द्रौपदी से जुड़ी वो रहस्यमयी बातें जो आप आज तक नहीं जानते, ऐसा था चरित्र...

 
द्रौपदी से जुड़ी वो रहस्यमयी बातें जो आप आज तक नहीं जानते, ऐसा था चरित्र...

Mahabharat : द्रौपदी के बारे में भविष्य पुराण में वर्णन किया गया है कि वह पूर्व जन्म में एक गरीब ब्राह्मणी थीं। वह वन में रहकर अपने जीवन को कठिनाइयों के बावजूद निरंतर योग्यता से निर्मित किया करती थीं। उसके पुण्य कर्मों के कारण, उसे अगले जन्म में पाण्डवों की महारानी का दर्जा प्राप्त हुआ।

भविष्य पुराण में बताया गया है कि जब युधिष्ठिर जुआ में सब कुछ हारकर वन में निवास के लिए जा रहे थे, तो मैत्रेय ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से इस बात को जान लिया था।

मैत्रेय ने पाण्डवों को बताया कि द्रौपदी ने पूर्व जन्म में ऐसे पुण्य किए हैं कि जहां भी वह रहेगी, वहां अन्नपूर्णा की भाँति उनका भंडार सदैव पूरा रहेगा। इसलिए, वन में रहते हुए भोजन और अन्न की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।

द्रौपदी के पांच नहीं तब इतने पति होते

द्रौपदी के विषय में यह कथा तो आप जानते ही होंगे कि अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त को पूरा करके द्रौपदी को पत्नी रुप में पाया। लेकिन जब यह अपनी मां कुंती के पास पहुंचे तब मां से कहा कि देखो तुम्हारे लिए कितना सुंदर फल लाया हूं।

कुंती ने कहा तुम पांचो भाई बांट लो। लेकिन जब उनकी दृष्टि द्रौपदी पर गई तब कुंती उलझन में पड़ गई। इसी समय श्री कृष्ण वहां पहुंचे और कुंती को द्रौपदी के पूर्वजन्म की बात बताई।

कृष्ण ने कुंती से कहा कि द्रौपदी ने पूर्वजन्म में भगवान शिव की तपस्या करके यह वरदान मांगा था कि उसे अगले जन्म में धर्मपरायण, बलवान, श्रेष्ठ धनुर्धर, रुपवान और धैर्यवान पति मिले।

यह पांचों गुण एक व्यक्ति में होना संभव नहीं है इसलिए शिव के वरदान के कारण द्रौपदी के पांच पति होंगे। यह भी कहा जाता है कि द्रौपदी ने शिव जी से चौदह प्रकार के गुण बताए थे।

लेकिन शिव जी ने यह वरदान देने से मना कर दिया तब द्रौपदी ने इन पांच गुणों वाले पति की मांग की थी। अगर शिव जी चौदह गुणों वाले पति का वरदान देते तो द्रौपदी के पांच नहीं बल्कि चौदह पति हो सकते थे।

इस तरह पांच पतियों के साथ रहती थी द्रौपदी

यह बड़े ही आश्चर्य की बात मानी जाती है कि द्रौपदी किस तरह से अपने पांचों पतियों के साथ समान प्रेम भाव और व्यवहार रखती थी और द्रौपदी को लेकर कभी पांडवों में आपसी विवाद क्यों नहीं हुआ।

इसका कारण यह माना जाता है कि पांण्डवों ने एक नियम बना रखा था कि द्रौपदी कभी भी एक साथ पांचों भाईयों के पास नहीं रहेगी।

एक भाई द्रौपदी के साथ एक वर्ष तक रहेगा उसके बाद द्रौपदी दूसरे भाई के साथ रहेगी। इस क्रम में द्रौपदी पांचों भाईयों के साथ रहती थी।

इसमें एक नियम यह भी था कि जब एक भाई द्रौपदी के साथ रहेगा तब दूसरा भाई द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा।

जो इस नियम का उल्लंघन करेगा उसे एक साल तक वन में रहना होगा। इस नियम के कारण दौपदी अपने सभी पतियों के साथ समान प्रेम भाव रख पाती थी और भाईयों के बीच विवाद नहीं होता था।

द्रौपदी का यह अभिशाप आज भी दिखता है

एक बार युधिष्ठिर दौपदी के साथ उनके कक्ष में थे। कक्ष के बाहर उनका जूता रखा हुआ था। लेकिन दुर्भाग्य से एक कुत्ता उस जुते को लेकर भाग गया।

उसी समय एक अपराधी का पीछा करते हुए अर्जुन द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश कर गए। इस अपराध के कारण अर्जुन को एक वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा।

द्रौपदी को जब पता चला कि यह सब एक कुत्ते के कारण हुआ है तब द्रौपदी ने कुत्ते को शाप दे दिया कि जब भी तुम्हार प्रेम मिलन होगा तब सारी दुनिया तुम्हें निर्लज्जता पूर्वक प्रेम करते हुए देखेंगी।

इसलिए चीर हरण के बाद द्रौपदी ने खुले रखे बाल

जुए में जब युधिष्ठिर द्रौपदी को हार गए तब दुशासन द्रौपदी के बाल पकड़कर खींचते हुए उन्हें भरी सभा में लेकर आया। इस समय द्रौपदी ऋतुचक्र में थी।

शास्त्रों के अनुसार ऋतुचक्र के दौरान स्त्री को सात्विक भाव से एक तपस्विनी की भांति रहना चाहिए। इसलिए द्रौपदी ने उन दिनों बनाव श्रृंगार नहीं किया था और अपने बाल खुले रखे थे।

उस अवस्था में भरी सभा में बालों से खींचकर लाए जाने के कारण द्रौपदी ने यह प्रण लिया कि अब यह बाल तब तक खुले रहेंगे जब तक कि दुशासन की छाती का लाहू इन्हें नहीं मिल जाता।